Menu
blogid : 245 postid : 39

आतंकवाद का हौव्वा

Celebrity Writer
Celebrity Writer
  • 10 Posts
  • 58 Comments

‘क्या यह हमारी बेटियों के लिए सुरक्षित है कि वे रात को पार्टी मनाने अपने दोस्तों के साथ हार्ड रॉक कैफे जाएं? मुझे बताया गया है कि मुंबई पुलिस ने आतंकवादी हमले की चेतावनी जारी की हुई है,’ मेरी चिंतातुर पत्नी ने कहा। दुनिया भर में लोग जब घर से बाहर निकलते है तो उनके दिमाग में यह सवाल उठता है। छुट्टियों के दौरान आतंकी हमले की आशंका असामान्य बात नहीं है। पूरी दुनिया में महानगरों में भारी भीड़ वाले इलाकों में बार-बार आतंकी हमले होते रहे है।


इस साल त्यौहारों का मौसम शांतिपूर्ण गुजर गया है। इसके बावजूद यह सच्चाई है कि घर से बाहर निकलते हुए लोगों के दिल में ख्याल आते है कि उनके साथ कुछ भयानक घट सकता है। इससे सिद्ध होता है कि आतंकवाद और आतंक दो ऐसी अवधारणाएं है जो एक दूसरे से गहरे जुड़ी हुई है। लोगों को प्रभावित करने की मीडिया की क्षमता को देखते हुए आतंकवादी निर्दोष लोगों को आतंकित करने के लिए इसका इस्तेमाल करने लगे है। चौबीसों घंटे के टीवी नेटवर्क और इंटरनेट ने मीडिया को इस प्रकार के हमले करने की सुविधा प्रदान कर दी है। इन्हीं के कारण पूरी दुनिया 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर के विध्वंस और नवंबर 2008 में मुंबई में गोलियां बरसाते आतंकियों को देख पाई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के प्रसारण से न केवल लोगों को घटनाओं की जानकारी मिलती है, बल्कि उन्हे अपने सामने घटते देख वे इन घटनाओं के एक तरह से शिकार भी बन जाते है। स्पष्ट है कि आतंकवाद का प्रयोजन लोगों के बीच आतंक फैलाना होता है और मीडिया आतंकी हमले के शिकार बने लोगों के साथ-साथ टीवी या इंटरनेट पर इस हमले को देख रहे लोगों को भी इसकी जद में ले आता है।’


मैं मनोविज्ञानी नहीं हूं किंतु फिर भी यह समझ सकता हूं कि टीवी पर सीधे प्रसारण में 9/11 हमले के दौरान दक्षिणी टॉवर पर हवाई जहाज टकराते, आग के दावानल से बचने के लिए व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर की खिड़कियों से मौत की गोद में छलांग लगाते और फिर टॉवरों को ध्वस्त होते को देखते हुए बहुत से लोगों के दिलोदिमाग पर आघात लगा है। स्पष्ट है, इस हमले को देख कर लोगों के दिल दहल गए। इसी प्रकार का आघात मुंबई हमले को टीवी पर देख कर लगा था। इस हमले को देख कर पूरे देश में लोग भयाक्रांत हो गए कि लश्करे-तैयबा के आतंकी कभी भी कहीं भी मुंबई स्टाइल में हमला बोल सकते है।


मीडिया आतंकवादियों की हरकतों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता है और लोगों के दिमाग पर आतंक तारी कर देता है। इन हमलों की भयावहता व्यक्ति की मन:स्थिति में बस जाती है और प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में सामान्य प्रतिक्रिया के बजाए इसका बहुत घातक असर पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, 2004 में आई सूनामी में 2,27,000 लोग मारे गए थे, जबकि 91 के आतंकी हमले में मात्र तीन हजार। फिर भी 91 हमले का लोगों की मन:स्थिति पर कहीं घातक असर पड़ा।


इंटेलीजेंस ब्यूरो का एक अधिकारी एक टीवी चैनल के सीईओ पर बरस पड़ा कि मीडिया आतंक के खतरों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा है। जो तत्व लोगों को आतंकित करना चाहते है वे अपनी हरकतों की अतिरंजना के लिए हमला किए बिना ही मीडिया का इस्तेमाल करते है। मुझे मारने की धमकी देकर गैगस्टर रवि पुजारा एकदम सुर्खियों में आ गया। इससे उसे अपना दबदबा बढ़ाने में मदद मिली। सेलीब्रिटी को निशाना बनाने और इसे मीडिया में प्रचारित करने की तरकीब का इस्तेमाल उसने मुंबई के व्यापारियों से वसूली में किया। पुलिस का कहना है कि मीडिया की मदद से आतंकित करने की इस तरकीब का पुजारा ने बहुत फायदा उठाया। मुझ पर हमला करने की योजना बनाने के बाद उसका काफी दबदबा बढ़ गया। आतंकवादी और गैंगस्टर आतंकी हमले और आतंक में स्पष्ट विभाजन रेखा को पहचानते है। वे आतंक फैलाने के लिए खोखली धमकियां देते है। इसीलिए थोथी धमकियां देकर भी मीडिया में कवरेज पाकर वे अपने मकसद में कामयाब रहते है।


मेरे एक अमेरिकी मित्र कहते है, ‘2001 में अमेरिका में 42 हजार से अधिक लोग कार हादसों में मारे गए और लाखों लोग दिल के दौरे और कैंसर के कारण जान गंवा बैठे। 91 आतंकी हमला विश्व के इतिहास में सबसे रक्तरंजित हमला था, जबकि उस हमले में तीन हजार से भी कम लोगों की मौत हुई थी। अन्य अप्राकृतिक कारणों से हुई मौतों के मुकाबले यह आंकड़ा कहीं नहीं ठहरता। इसका मतलब 91 हमले में लोगों की मौत और उनके परिजनों की तकलीफ को कमतर आंकना नहीं है, बल्कि महज यह बयान करना है कि बहुत से लोग रोजाना मारे जाते है और उनके परिजन भी 91 हमले में मारे गए लोगों के परिजनों जितनी ही पीड़ा से गुजरते है।’


लोगों को आतंक से आतंकवाद को अलग करना सीखना चाहिए। जब हम नई सदी के दूसरे दशक में प्रवेश कर चुके है, हमें पहचानना होगा कि आतंकी हमले भी कार हादसे, कैंसर और प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही मानव जीवन की त्रासदी है। हमें आतंकवादियों के हमलों से खुद के बचाव के तमाम उपाय तो जरूर करने चाहिए, किंतु उनके षड्यंत्र का शिकार नहीं बनना चाहिए। अगर हम ऐसा होने देंगे तो वे बिना गोली चलाए ही जीत जाएंगे। हमें आतंकवाद को आतंक से अलग करना सीखना होगा। यह विभाजन ही आतंकवाद फैलाने वालों की पहुंच व शक्ति को कमजोर करेगा।


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh