Menu
blogid : 245 postid : 24

बॉलीवुड का संकट

Celebrity Writer
Celebrity Writer
  • 10 Posts
  • 58 Comments

मानव ही एकमात्र ऐसा जीव है जो अपने भविष्य के बारे में सोचता है। हम फिल्म उद्योग से जुड़े हैं। बॉलीवुड जैसी फिल्मी दुनिया अन्यत्र कहीं नहीं है। जैसे ही फिल्म बनाने का विचार निर्माता के दिल में जन्म लेता है, उसे चिंता सताने लगती है कि रिलीज होने के बाद क्या दुनिया भर में दर्शक इसे स्वीकार करेंगे? हम ज्योतिषियों और गुरुओं की शरण में जाते हैं कि फिल्म रिलीज करने का सही मुहूर्त बता दें। इमरान हाशमी 8 नंबर को लेकर अंधविश्वासी हैं। उनका मानना है कि उनकी जो भी फिल्म 8 तारीख या अंकों के जोड़ 8 वाली किसी तारीख पर रिलीज होगी तो वह फ्लॉप हो जाएगी। उनसे इसका कारण पूछा जाता है तो वह भन्ना जाते हैं।


हिमेश रेशमिया भी पागलपन की हद तक अंधविश्वासी हैं। अपनी फिल्म का शीर्षक भी वह अंकशास्त्र के आधार पर रखते हैं। फिल्म के मुहूर्त से लेकर उसकी रिलीज तक की सभी तारीख कंपनी के ज्योतिषी से पूछकर तय की जाती हैं। इन सब गतिविधियों को देखकर ही पता चल जाता है कि फिल्म उद्योग में कितनी अनिश्चितता है। फिल्मी दुनिया के कॉर्पोरेट मैनेजर ऐसे विशेषज्ञों की सेवाएं लेते हैं जो अत्याधुनिक तरीकों से मीडिया व मनोरंजन बाजार के रुझान का पता लगाते हैं और इनके आधार पर फिल्म उद्योग के लिए फायदेमंद पुर्वानुमान लगाते हैं। इन तमाम कवायदों से केवल यह सुनिश्चित होता है कि फिल्म उद्योग में कुछ भी निश्चित नहीं है।


इन तमाम अंधविश्वासों और आशावाद के बावजूद सच्चाई सबके सामने है। मुंबई से चेन्नई, बेंगलूर से हैदराबाद तक किसी भी फिल्मी दुनिया से जुड़े किसी भी व्यक्ति से बात कीजिए वह यही बताएगा कि वर्तमान बहुत हताशाभरा है। हाल ही में रिलीज हुईं काइट्स और रावण के विनाश ने उन सबका विश्वास डिगा दिया है जो यह सोच रहे थे कि बॉलीवुड की पैठ पूरी दुनिया में बन सकती है। आजकल बड़े बैनरों की फिल्में भी घटी दरों पर बिक रही हैं। प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने के लिए जो बड़े औद्योगिक घराने फिल्म स्टारों को मुंहमांगी कीमत दे रहे थे, वे पहले किए गए करारों से पीछे हट रहे हैं। फिल्म उद्योग को आखिर हो क्या गया है?


मैंने फिल्म उद्योग के तीन महारथियों से पूछा कि भविष्य के बारे में उनका क्या मानना है? एक दूजे के लिए जैसी ब्लॉक बस्टर फिल्म के निर्देशक के बालाचंद्रन का कहना है, ‘कयामत का दिन करीब आ रहा है। नासमझ, किंतु धनी फिल्मकार मोटी रकम खर्च कर मेगा फिल्म बना डालते हैं जो बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर जाती है। सप्ताह-दर-सप्ताह यही हो रहा है।’ कन्नड़ फिल्म उद्योग के लिए काम करने वाला एक बड़ा नाम भी दर्शकों को सिनेमा हाल में नहीं खींच पा रहा है। उसका कहना है कि अगर टीवी पर सीरियल का विकल्प नहीं होता तो कलाकार भूखों मर जाते।


फिल्मी दुनिया के हालात पर सुभाष घई का कहना है कि तथाकथित रक्षक, जो फिल्म उद्योग को बचाने और हमें फिल्म निर्माण का पाठ पढ़ाने आए थे, फिल्म उद्योग की दुर्दशा के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। उन्होंने फिल्म का बजट इतना बढ़ा दिया है कि खर्च तक निकलना मुश्किल हो गया। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि जो चार बड़े औद्योगिक घराने बड़े जोरशोर से फिल्मी दुनिया में उतरे थे और जिन्होंने फिल्मों में खुले हाथों से पैसा खर्च किया, अब निर्माण रोकने जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि करीब एक साल में जब फिल्मों के पतन का वर्तमान चक्र पूरा हो जाएगा तो एक बार फिर एक समझदार व संजीदा शुरुआत होगी। तब तक हवा में उड़ने वाले फिल्मकार जमीन पर आ चुके होंगे।


इस सुनिश्चित अनिश्चितता वाले समय में हमारे सामने क्या चारा है? आंखें खोलकर वर्तमान की सच्चाई से रूबरू हों, न कि अतीत में खोए रहें। जैसा आप देखना चाहते हैं, वैसा न देखें, बल्कि जमीनी वास्तविकता को समझें। आप बिना कमाई हुई पूंजी के बल पर कंपनियां या देश खड़ा नहीं कर सकते। हम जैसे 70 के दशक वाले फिल्मकार भाग्यशाली हैं कि उन्हें समाजवादी सोवियत मॉडल में काम करने का मौका मिला जब तमाम मजबूरियों के साथ कम से कम पैसे में काम किया जाता था, काम पर ध्यान दिया जाता था और इसी के आधार पर सफलता व पहचान मिलती थी। शानशौकत के आदी वैश्विक युग के नई पीढ़ी के फिल्मकारों को अपने सीनियर्स से सबक सीखना चाहिए, तभी बॉलीवुड जिंदा रह सकता है..।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh