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सूचना का वायरस

Celebrity Writer
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हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक सार्वजनिक मंच से सूचना के वर्तमान विध्वंसक स्वरूप की बात कही थी। ओबामा ने कहा कि आईपॉड और दूसरे ब्लैकबेरी जैसे इलेक्ट्रानिक गैजेट की वजह से सूचना सशक्तीकरण के बजाय मनोरंजक और विध्वंसक रूप अख्तियार कर रही है। मेरा अभिनेता भांजा इमरान हाशमी भी सूचना का आदी है। वह हर समय हर जगह से सूचनाएं इकट्ठी करता रहता है। आलम यह है कि उससे किसी भी विषय पर 10 मिनट भी बात करना मुहाल है। वर्तमान में ऐसे हालात सिर्फ इमरान के साथ ही नहीं है। पूरी दुनिया में ऐसे युवाओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है जो सूचना नाम के वायरस के शिकार होते जा रहे हैं। बहुत से लोगों ने कहा कि बराक ओबामा का बयान ठीक उस बुजुर्ग की तरह है जो उम्र के ढलान पर तुनकमिजाज हो जाते हैं, लेकिन मेरे मुताबिक उनके बयान का मजाक उड़ाने के बजाय दुनिया को उनके शब्दों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि वह किस ओर इशारा कर रहे हैं। बीते एक दशक के दौरान हममें से ज्यादातर ने अपने व्यस्ततम समय का बड़ा हिस्सा इंटरनेट सर्फिंग में बिताया है। इस दौरान हमने अपने मित्रों, रिश्तेदारों व सहयोगियों को इलेक्ट्रानिक संदेश भेजे और फेसबुक व ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर उलझे रहे। शहरी वातावरण में पले-बढ़े हमारे बच्चों का ज्यादातर समय किसी न किसी स्क्रीन के सामने ही बीता।
शिक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह से जुटाई गई सूचनाओं की वजह से हमारी और हमारे बच्चों की समझ पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो चीजों को समझने की हमारी रफ्तार धीमी हो गई और सामान्य तौर पर हमारी याद करने की क्षमता प्रभावित हुई। जब मैं बहुत ज्यादा नेट सर्फिंग के खतरों के बारे में शिक्षा विभाग के एक अधिकारी से बात कर रहा था तो उन्होंने कहा कि आजकल बच्चे अपनी कक्षाओं में एकाग्रचित नहीं हो पा रहे हैं। सूचनाओं का अंबार उनका ध्यान भंग कर रहा है। जब हम वेब पर कोई छोटी-सी जानकारी जुटाते हैं तो हम बेशक अपने दिमाग को तेजी से सूचना इकट्ठा करने का प्रशिक्षण दे रहे होते हैं, लेकिन यह जानकारी सतही होती है। जब हम किसी फिल्म की रिलीज से पहले उसके प्रचार के लिए निकलते हैं तो हमें ऐसे दर्जनों पत्रकार मिलते हैं जो अपने सवाल इंटरनेट की मदद से तैयार करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि उनमें से ज्यादातर पत्रकारों के सवाल करीब-करीब एक जैसे ही होते हैं।
यह जरूरी नहीं कि जिसके पास सूचना हो वह बुद्धिमान हो ही। चलिए दोनों के बीच के अंतर पर थोड़ा सा विचार करते हैं। हर युग में ऐसे लोग हुए हैं जो संचार के नए उपकरणों का विरोध करते हैं। सदियों पहले सुकरात को डर सताया था कि किताबें लोगों की याद करने की क्षमता को खत्म कर देंगी। हमारे माता-पिता हमें चेतावनी देते थे कि रेडियो सुनने और फिल्में देखने से हम मूर्ख बन जाएंगे। कुछ लोग अपने बच्चों को डांटते हैं कि बहुत ज्यादा टीवी देखने से उनकी कल्पना करने की क्षमता खत्म हो जाएगी। इस सबके बावजूद हममें से काफी लोग यहां हैं और बेहतर काम कर रहे हैं। कोई मूर्ख व्यक्ति ही कंप्यूटर और इलेक्ट्रानिक नेटवर्क के फायदों को अनदेखा कर सकता है। अगर सूचनाओं के नए उपकरणों का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह बहुत फयदेमंद हो सकते हैं। इंटरनेट की मदद से हम अपने मित्रों और परिजनों के साथ आसानी से संपर्क में रहते हैं। इसके जरिये आसानी से महत्वपूर्ण जानकारियां जुटा लेते हैं और अपनी भावनाओं को बयां कर दूसरों के साथ आसानी से जुड़ जाते हैं।
दो दशक पहले जब व‌र्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार हुआ तो हमने इसके फायदों का जश्न मनाया और लुत्फ भी उठाया। हालांकि इस दौरान हमने इसके नकारात्मक पहलुओं की ओर बहुत कम ही ध्यान दिया। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमने अपनी ऑनलाइन जिंदगी के नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान ही नहीं दिया। अब समय आ गया है कि हम नेट के संतुलित नजरिये पर गौर करें। जैसा कि राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है, सूचना ज्ञान के स्त्रोत के तौर पर अपनाई जानी चाहिए, न कि भटकाव के स्त्रोत के तौर पर। तेजी से सूचनाएं जुटाना जितना अहम है उतना ही जरूरी है उस जानकारी के मिलने के बाद उस पर गहराई से सोचना।


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